करचरणकृतं वाक्...
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करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो॥
प्रभो! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मनसे जो भी अपराध किये हों; वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको आप क्षमा कीजिये। हे करुणासागर श्रीमहादेव शंकर ! आपकी जय हो।