शशिना च निशा...

विकिसूक्तिः तः

शशिना च निशा निशया च शशी शशिना निशया च विभाति नभ:। पयसा कमलं कमलेन पय: पयसा कमलेन विभाति सर:॥

शशिना च निशा निशया च शशी शशिना निशया च विभाति नभः।

पयसा कमलं कमलेन पयः पयसा कमलेन विभाति सरः ॥

मणिना वलयं वलयेन मणिर् मणिना वलयेन विभाति करः ।

कविना च विभुर्विभुना च कविः कविना विभुना च विभाति सभा ॥

सभया च भवान् भवता च सभा। सभया भवता च विभाति जगत् ।।

भावार्थ---

कंगन से कलाई की शोभा होती है और सुन्दर कलाई से कंगन की। कंगन और कलाई से हाथ की दर्शनीय सुंदरता बढ़ जाती है।

चन्द्रमा से रात्रि की शोभा होती है और रात्रि से चंद्रमा की। चन्द्रमा और रात्रि से आकाश की अद्भुत शोभा होती है।

निर्मल जल से कमल की शोभा बढ़ जाती है और कमल से स्वच्छ जल की। इन दोनों से उस सरोवर की अद्भुत शोभा बढ़ जाती है।

श्रेष्ठ कवि से उत्तमकाव्यवैभव वाले राजा की शोभा बढ़ जाती है और उत्तमकाव्य पसंद करने वाले राजा से कवि की शोभा बढ़ जाती है। कवि और उत्तमकाव्यवैभव पसंद राजा से सभा की शोभा अद्भुत बढ़ जाती है।

अच्छी सभा (गोष्ठी) से आपकी शोभा बढ़ जाती है और आपसे उस सभा की शोभा। इन दोनों से सम्पूर्ण जगत् की अद्भुत शोभा बढ़ जाती है। (---राजेश्वराचार्य:)

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